वृषभ राशि में देवगुरु के आगमन से घर-घर होगा कायाकल्प

- गुरु बृहस्पति हरि हर की राशि वृषभ में ’विस्तार कारक सोभाग्य के सुचक. माने जाते है


उज्जैन। 1 मई को देवगुरु बृहस्पति हरिहर की राशि वृषभ में प्रवेश करेंगे। वृषभ राशि में गुरु के आगमन से गेहूं और विकास के रास्ते अग्रसर होंगे और खाद्य पदार्थ एवं सोना चांदी के साथ सजावट की वस्तुएं महंगी होगी।
ज्योतिर्विद अजय शंकर व्यास के अनुसार वैदिक ज्योतिष पंचांग वैसाख मास माधन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी गुरुवार 1 मई दोपहर 12 बजकर 59 मिनट कर्क लग्न मे देवगुरु ब्रहस्पति हरी ओर हर की राशि वृषभ में, 9 अक्टूबर 2024 को सुबह 10 बजकर 1 मिनट पर गुरु वृषभ राशि में वक्री हो रहे हैं। इसके बाद उनकी यह चाल अगले वर्ष 4 फरवरी 2025 की दोपहर 1 बजकर 46 मिनट में बदलेगी। गुरु के उल्टी चाल चलने से कुछ राशियों को बंपर लाभ मिलने वाला है।
विवाह होने में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है
ज्योतिर्विद अजय शंकर व्यास के अनुसार ईशान कोण के स्वामी देव गुरु बृहस्पति माने जाते हैं। साथ ही वैदिक ज्योतिष में गुरु बृहस्पति को धार्मिक कार्यों और आध्यात्मिकता का कारक ग्रह माना जाता है। साथ ही यह दिशा ज्ञान एवं धर्म-कर्म की सूचक है। इस दिशा में दोष होने पर व्यक्ति नास्तिक हो सकता है। उसका पूजा- पाठ में मन नहीं लगेगा। साथ ही विवाह होने में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। वहीं व्यक्ति को उदर विकार, मधुमेह और पाचन क्रिया से संबंधित रोग भी हो सकते हैं।

बृहस्पति देवताओं के पुरोहित

ज्योतिर्विद अजय शंकर व्यास ने बताया कि बृहस्पति के अधिदेवता इंद्र और प्रत्यधि देवता ब्रह्मा हैं। महाभारत के आदिपर्व में उल्लेख के अनुसार, बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित हैं। ये अपने प्रकृष्ट ज्ञान से देवताओं को उनका यज्ञ भाग या हवि प्राप्त करा देते हैं। सप्ताह में बृहस्पतिवार यानी गुरुवार का दिन देव गुरु बृहस्पति को समर्पित दिन है। देव गुरु बृहस्पति सभी देवताओं के गुरु हैं। यदि गुरु बृहस्पति उच्च स्थान में विराजमान हैं और अन्य किसी ग्रह की साढ़ेसाती चल रही है, तो गुरु बृहस्पति के उच्च होने से जातक पर किसी अन्य ग्रह की महादशा या कष्ट का प्रभाव नहीं होता।

गुरु की शुभ दृष्टि से दोष नष्ट

बारह राशि मे गुरु ग्रह धनु और मीन राशि के स्वामी है कर्क राशि मे उच्च मकर राशि मे नीच के होते हे नक्षत्र अनुसार पुनर्वसु विसाखा पुनर्वास भाद्रपद के स्वामी है गुरु ब्रहस्पति को कौ ग्रहो मे देव पद दिया गया है जिनकी शुभ दृष्टी से दोष खत्म होती है। प्रत्येक राशि - मे एक वर्ष कार्य काल गोचर करते हुए अति महत्वपूर्ण शिक्षक (मास्टर) मानिटर कोच गुणो का विस्तार कारक है।
’हरिहर की राशि में बृहस्पति के आने से उन्नति के रास्ते खुलेंगे’
ज्योतिर्विद पं. व्यास के अनुसार हर की वृषभ राशि में देव गुरु विराजमान होने से घर-घर पुर्व उत्तर दक्षिण-पश्चिमी भारत का घर-परिवार आर्थिक आय के स्त्रोत बढ़ते है विकास को शिक्षा, कला, खेल के बेहतर अवसर विदेशागत, निवेश, व्यापार, संगठन, आंतरिक सुरक्षा, तंत्र मजबूत, अविवाहित का विवाह योग, धार्मिक, आध्यात्मिक, ध्यान कार्य, आयकर बढ़ोतरी, रहन सहन के उपयोगिता के चलते खाद्य पदार्थ, वस्त्र आभूषण, सोना चांदी और खाद्य पदार्थ घरेलू सजावट से संबंधित वस्तुएं महंगाई बनी रहती है।
उज्जैन में प्राचीन स्थान श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में गुरु ब्रहस्पति मंदिर और गोलामंडी मे अति प्राचीन शास्त्र में उल्लेखनीय है।

सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह

बृहस्पति हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। गैस विशाल पृथ्वी के आकार का 11 गुना और सौर मंडल के अन्य सभी ग्रहों की तुलना में 2,5 गुना अधिक विशाल है। बृहस्पति का वजन अपनी धरती के वजन से 318 गुना अधिक है। बाकी सभी ग्रहों के कुल आकार से दोगुने से भी अधिक है। हालांकि यह विशाल है।
’बृहस्पति हाइड्रोजन और हीलियम’ ’से बना’ ’ग्रह है’
बृहस्पति सूर्य की तरह ही हाइड्रोजन और हीलियम से बना एक ’गैस’ ग्रह है। बृहस्पति के चार बड़े चंद्रमाओं (आयो, यूरोपा, गैनिमीड और कैलिस्टो) को गैलीलियन उपग्रह कहा जाता है क्योंकि गैलीलियो ने उन्हें खोजा था।

पश्चिम दिशा में लगाए गुरु की तस्वीर

ज्योतिर्विद अजय शंकर व्यास के अनुसार गुरु की तस्वीर लगाने के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र पश्चिम क्षेत्र है। मंदिर या पूजा कक्ष, घर के देवस्थान में रखा जाता है, जो पूर्वोत्तर क्षेत्र है। यह वह स्थान है जो देवताओं के लिए पसंदीदा है। अतः गुरु की तस्वीर पश्चिम दिशा में लगानी चाहिए।