आखिर मनुष्य घमंड क्यों करता है ? घमंड जीवन में क्यों जरूरी है ?
नईदिल्ली। घमंड हमारे शरीर का एक अहम् हिस्सा है। घमंड एक ऐसा शब्द जो सुनने में बहुत बुरा लगता है पर बहुत आत्मविश्वासी होता है। अगर घमंड प्राणी में अत्यधिक हो तो विनाश करता है, मध्यम घमंड हो उन्नतशील बनाता है और घमंड न तो हीन व दीन बनाता है।
घमंड हमें किसी भी क्षेत्र का मुखिआ बनाने में बहुत मदद करता है, घमंड हमें हमारी क़ाबलियत बताता है, घमंड से हमारी सुरक्षा होती है, घमण्ड से हमें आनंद और खुशी की अनुभूति होती है। अगर किसी के पास बड़ी गाडी और बंगला हो तथा उनका घमंड न करे तो मज़ा नहीं आता है। घमंड के पीछे तारीफ़ शब्द छिपा रहता है जो हमें आगे बढ़ने में मदद करता है। घमण्ड से हमारे अंदर का आत्मविश्वास बढ़ता है, घमंड और आत्मविश्वास का गहरा सम्बन्ध होता है। जब-जब घमण्ड बढ़ेगा तो आत्मविश्वास भी बढ़ेगा लेकिन जब-जब घमण्ड कम होगा तो आत्मविश्वास कम हो जाएगा।
अगर कोई बहुत खूसूरत स्त्री है और वो अपनी खूबसूरती का घमंड न करे तो उसकी शादी कहीं भी किसी भी बद्सूरत आदमी से की जा सकती है। कोई धनवान आदमी है वो अपने धन का घमंड न करे तो उसकी इज्जत कोई नहीं करता है। कोई ताकतवर आदमी अपनी ताकत का घमण्ड न करे तो कोई उससे डरेगा नहीं , घमंड से प्रकृति का समन्वय बना रहता है, घमंड के कारण ही युद्ध होते हैं।
आज अमेरिका बहुत घमण्डी है तो सभी डरते हैं क्योंकि उसके पास धन और शक्ति है। ज्ञानी आदमी अपने ज्ञान का घमंड करके ही उच्च स्तर प्राप्त करता है। घमंड ही एक ऐसा शब्द है जो हमें समाज में मान-सम्मान दिलाता है। घमंडी से लोग डरते हैं। कुछ लोग अपने घमंड का एह्सास नहीं होने देते हैं, लेकिन सभी प्राणियों में घमंड कूट-कूट कर भरा होता है। जैसे-जैसे मनुष्य का उच्च स्तर बढ़ता है वैसे-वैसे घमण्ड का स्तर भी बढ़ता है। अगर कोई प्राणी अपनी क़ाबलियत का घमंड न करे तो उसको समाज में उच्च स्थान नहीं मिलता है। अत्यधिक घमंड विनाश का कारण होता है। इसलिए जयादा घमंड नहीं करना चाहिए। घमंड उतना ही करना चाहिए जितना आपको समाज में उचित सम्मान मिल सके।
भगवान की भक्ति में घमंड बिल्कुल नहीं करना चाहिए। घमंड से क्रोध बढ़ता है, क्रोध से शांति भंग होती है , शांति भंग होने से चित व मन विचलित होता है। चित विचलित होने से पांचों प्राण विचलित होते हैं और पांचों प्राण विचलित होने से शंरीर एकाग्र नहीं होता है जिसके कारण ध्यान व साधना नहीं होती है।
-डॉ. एचएस रावत धर्मगुरु