क्या गुरु की पूजा करनी चाहिए या भगवान की भक्ति ?

  -क्या गुरु पूजा से भी लग सकता है पाप ? गुरु पूजा और भगवान की मूर्ति पूजा में कौन सी पूजा श्रेष्ठ होती है?

मनुष्य का स्वभाव बहुत विचित्र है। यह स्वार्थ और मोह में डूबा हुआ रहता है। जहां स्वार्थ दिखाई देता है मनुष्य का झुकाव उधर ही शुरू हो जाता है। मनुष्य गुरु की पूजा या भगवान की भक्ति भी स्वार्थ के वशीभूत याचक के रूप में ही करता है। बहुत कम साधक पूजा वाले भक्त होते हैं। 

गुरु एक ज्ञानी और शिक्षक होता है। गुरु सिर्फ ज्ञान का और भगवान का रास्ता दिखाता है। अगर आप गुरु को भगवान मानकर उसकी पूजा करोगे तो आप भगवान को कभी प्राप्त नहीं कर सकोगे। जो गुरु अपनी पूजा भक्तों से करने को कहते हैं उनसे बड़ा कोई पापी और अज्ञानी गुरु नहीं हो सकता है। क्योंकि गुरु की पूजा करते समय भक्त का भाव तो गुरु के प्रति भगवान का हो जाता है। ऐसे स्थिति में भक्त गुरु से ऊपर की भक्ति और ज्ञान के बारे में सोच ही नहीं सकता है। उसकी भक्ति और दिमाग की सोच सिर्फ गुरु तक ही सीमित हो जाती है। उससे आगे वो सोच ही नहीं सकता है। उसके दिमाग को बांध दिया जाता है कि गुरु ही सब कुछ है। और यही से शुरुआत होती है हिन्दू धर्म के पतन की। 

जब भक्त का ज्ञान गुरु की श्रद्धा की सीमा में बंध जाता है तो यही से भक्त का ज्ञान जड्मत हो जाता है। इस प्रकार लाखों भक्त ऐसे गुरु की पूजा करके अज्ञान के आगोस में आ जाते हैं। तथा वो भगवान को याद ही नहीं करते हैं। भगवान को भूल जाते हैं। जब कुछ भक्तों का ज्ञान जाग्रत हो जाता है तो वो अपने आप को उस गुरु से ठगा हुआ समझते हैं तथा गुरु को मन ही मन आत्मा से कोसते हैं। तथा मन ही मन बददुआ देते हैं। यही से शुरू होती है ऐसे गुरुओं की दुर्गति की दशा। 

 गुरु एक सत्य ज्ञान और दिशा का मार्गदर्शक होता है। अगर कोई गुरु आपको यह कहता है कि मैं भगवान का अवतार हूँ , मैं कृष्ण का अवतार हूँ , मैं कबीर का अवतार हूं , मैं का साईं का अवतार हूं, मैं शिव बाबा का अवतार हूं या यह कहता है कि मैं देवी हूँ तो ऐसे गुरु भगवान के नाम पर अपराध करते हैं। जिसके कारण इनका अंत समय बहुत खराब और बुरा होता है या इनका जीवन जेलों में कटता है। ऐसे गुरुओं के कारण हिन्दू धर्म की बहुत हानि हो रही है। आखिर जो लोग गुरु की पूजा करते हैं वो भक्त पाप के भागी क्यों हो जाते हैं ? 

इसका मुख्य एक वायो वैज्ञानिक कारण है।

जब कोई भी मनुष्य या भक्त किसी गुरु की पूजा करता है तो उस भक्त के ध्यान में हमेशा उस गुरु के जीवित शरीर का चित्र ही रहता है। तथा ध्यान उस गुरु के जीवित शरीर की औरा से बुरे या अच्छे गुण ग्रहण करता है। जब भक्त के दिमाग में गुरु का जीवित शरीर रहेगा तो गुरु के शरीर से उत्पन्न होने वाली अच्छी या बुरी तरंगे और गुरु के अच्छे या बुरे विचार भी उस भक्त के चित , बुद्धि और मन में आ जाते हैं।

जब आप गुरु पूजा कर रहे हैं या गुरु में ध्यान लगा रहे हैं तो उस समय गुरु के विचारों में वासना आ रही है या अपराध आ रहा है या दुष्ट विचार आ रहे हैं तो वो सभी विचार भी उस भक्त के चित में , मन में और बुद्धि में आने शुरू हो जाते हैं। क्योंकि विचार आना और भिन्न भिन्न के विचार आना ग्रहों की गति से होती है। और यह टेलीपैथी का सिद्धान्त भी है। जब गुरु के सभी बुरे विचार आपके चित , मन और बुद्धि में आ जाते हैं तो भक्त के मन , बुद्धि और चित को भी पाप का भागी बनना पड़ता है। 

इसलिए कहा जाता है कि जैसा गुरु वैसा चेला। गुरु से ज्ञान मार्ग हासिल करने के बाद अच्छे शिष्य को अपने स्वाध्याय अध्ययन और भगवान भक्ति की ओर निकल जाना चाहिए। पुराने ऋषि मुनि अपने आश्रमों में शिष्यों का जमावड़ा नहीं रखते थे। आजकल के गुरु वोट बैंक के लिए , सरकार पर दबाब बनाने के लिए , अपनी ताकत को दिखाने  के लिए, अपने बुरे कर्मो पर पर्दा डालने के लिए अपने शिष्यों की लाखों की संख्या रखते हैं।

इसलिए ऐसे गुरुओं की पूजा करने वाले भक्तों का अनर्थ होता है। इसलिए सत्य सनातन हिन्दू धर्म के मंदिरों में भगवानों की मूर्तिओं की पूजा की जाती है। जब आप उन मूर्तियों की पूजा करते हो तो आपके ध्यान में, चित में और बुद्धि में भगवान के गुण और अच्छे कर्म आ जाते हैं। तथा भगवान के उन गुणों की पूजा करने से ही भक्त का कल्याण होता है। बहुत सारे भक्त यह कहते हैं कि हम तो गुरु की कृपा से आज करोड़पति बन गए हैं। यह सब तो आपके भाग्य कुंडली में लिखा होता है कि कब आप करोड़पति बनोगे। 

उपरोक्त बातें उन गुरुओं को बहुत बुरी लग सकती हैं जो कि इस प्रकार के कुकृत्य में फंसे हुए हैं तथा अपनी पूजा करवाते हैं। तथा उन भक्तों को भी बुरी लग सकती है जो सिर्फ गुरु पूजा में ही अपना कल्याण देखते हैं। मैनें गुरु पूजा का पाप और भगवान भक्ति का वरदान आपको वायो वैज्ञानिक आधार पर विवेचन कर दिया है। आप सभी भक्त लोगों को एक बार इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ना होगा और सोचना होगा तथा अपनी ज़िंदगी का निर्णय लेना होगा क्या सच है और क्या गलत है। यह सत्य है इन स्वयंभू गुरुओं के कारण हिन्दू धर्म कमजोर हो रहा है तथा बिखर रहा है। आज सभी हिंदुओं को एक जुट होकर सनातन धर्म के देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए। गुरु को ग्रन्थों में भगवान का रूप भी कहा गया है यह जानकारी अगली पोस्ट में लिखुंगा। 

  -डॉ. एचएस रावत