सिद्ध पुरुष या ऋषि की वाणी का श्राप कैसे लगता है ? ये वाणी, दिव्य वाणी और सिद्ध वाणी क्या होती है ? और कहाँ से आती है ? वाणी का विज्ञान क्या है?
नईदिल्ली। सिद्ध पुरुष या ऋषि की वाणी का श्राप कैसे लगता है ?
ये वाणी, दिव्य वाणी और सिद्ध वाणी क्या होती है ? और कहाँ से आती है ? वाणी का विज्ञान क्या है?
अगर आप किसी से पूछो कि ये वाणी क्या है तो हर कोई कहेगा बहरे हो क्या ? जो बोल रहा हूँ वही वाणी है। यह सत्य है कि जो बोला जाता है वही वाणी होती है। पर वाणी का विज्ञान बहुत गहरा है। यह उसी प्रकार गहरा है जिस प्रकार एक गाना सुनने वाले को सिर्फ यह पता होता है कि स्पीकर गाना गा रहा है। लेकिन सत्य यह कि स्पीकर के पीछे जो सर्किट का जंजाल होता है वही उस गाने को गाता है। इसी प्रकार हमारी वाणी के पीछे कुछ नाड़ियों और तरंगो का जंजाल होता है। जिसको हम देख नहीं पाते हैं।
वाणी का संबंध धुलोक (अंतरिक्ष) से होता है, धुलोक का संबंध चित से होता है, चित का संबंध बुद्धि से होता है, बुद्धि का संबंध अहंकार से होता है, अहंकार का संबंध मन से होता है और मन का संबंध नाभि से होकर व्यान प्राण से होते हुए जिव्या से होता है। वाणी हमारे व्यान प्राण से संचालित होती है व्यान प्राण ही अंतरिक्ष से शब्दों को लाता है।
जिव्या के अंदर 182 प्रकार के छिद्र और दाने होते हैं जो वाणी को भिन्न-भिन्न शब्द बना कर बोलते हैं । वाणी दो प्रकार की होती है ।
एक तो साधारण वाणी जो हम रोजाना बोलते हैं इसको हम व्यष्टि वाणी भी कहते है । इस वाणी के द्वारा मनुष्य रोज़मर्या की जरूरत को पूरा करता है। तथा ये वाणी जानवरों में भी होती है। दूसरी वाणी जिसको हम दिव्य वाणी या समष्टि वाणी कहते हैं।
यह वाणी 3 प्रकार की होती है।
पहली- सतोगुणी,
दूसरी- रजोगुणी तथा
तीसरी- तमोगुणी होती है।
जब मनुष्य सतोगुणी वाणी बोलता है तो इसके बोलने से जानवर भी हिंसा छोड़ देते हैं तथा मनुष्य के प्रेमी बन जाते हैं। सतोगुणी वाणी जिव्या से निकलते ही प्रथ्वी के 284 चक्र लगा लेती है इस वाणी में प्यार, ज्ञान, सत्य शीलता और सतगुण होता है। यह वाणी मनुष्य के मस्तिष्क के चारों तरफ ज्ञान और शांति का घेरा बना लेती है।
रजोगुणी वाणी 384 तथा तमोगुणी वाणी 480 चक्र लगा लेती है। रजोगुणी वाणी सत्य व असत्य का मिश्रण होता है। तमोगुणी वाणी की गति इतनी तेज़ होती है कि यह वाणी जिव्या से निकलते ही आपके मस्तिष्क के चारों तरफ क्रोध का घेरा बना लेती है तथा आपकी सोचने की शक्ति को शून्य कर देती है। यह वाणी हिंसा, क्रोध, प्रतिशोध, हत्या, छल, कपट, ईर्षा तथा झूठ व षडयंत्र से युक्त होती है।
जब योगी पुरुष की सतोगुणी वाणी नाभि से चलकर मन और बुद्धि को एकाग्र करती हुई जिव्या से बाहर आती है तो वही वाणी दिव्य और सिद्ध कहलाती है। उस समय अगर किसी सिद्ध पुरुष या योगी ने शाप दिया तो शाप और वरदान दिया तो वरदान सिद्ध हो जाएगा।
इसलिए मेरे प्यारे मित्रो, सतोगुणी वाणी बोलने वाले बनो तथा किसी को बुरा न बोलो न बुरा लिखो न बुराई करो झूठे प्रपंचों व षड्यंत्रों से बचना चाहिए। वाणी तभी सिद्ध होती है तब मनुष्य सच और सतोगुणी वाणी का प्रयोग करने का अभ्यासी हो जाता है। सतोगुणी वाणी से हमारे 10 प्राणों में अमृत आ जाता है। नाग जैसे प्राण भी सत्यवादी हो जाते हैं।
वाणी को सिद्ध कैसे किया जाए इसकी जानकारी अगले लेख में लिखने की कोशिश करूंगा।
-धर्मगुरु डॉ. एचएस रावत