भगवान ने दुख क्यों दिया.…... ?

 भगवान ने दुख क्यों दिया ? दुख का मूल कारण क्या है ? देवताओं को दुख क्यों नहीं दिया ? क्या है इसका ज्योतिषीय आधार ?

नईदिल्ली। यह बात सत्य है कि “दुख” सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही सभी लोकों पर आया था। यह दुख चारों योनियों { स्थावर , उद्विज , अंडज , जंगम } में होता है। मनुष्य योनि में दुख पिछले कर्मो के आधार पर चित में होता है। 

इसके अलावा दुख का संबंध 5 तत्वों के साथ होता है। लेकिन यह दुख शांत अवस्था में रहता है। जैसे ही गोचर में किसी पापी ग्रह की तरंगे शरीर को प्रभावित करती हैं तो चित में हलचल मच जाती है। जैसे ही चित में हलचल मचती है तो दुख बाहर निकलने की कोशिश करता है। अगर ग्रहों की तरंगों का पाप प्रभाव बढ़ जाता है तो दुख बाहर आ जाता है और मनुष्य को अपने आगोस में ले लेता है।

चित तालाब में शांत पानी की तरह शरीर में होता है अगर तालाब में पत्थर फेंक दिया जाये तो तालाब में लहर पैदा हो जाती है और बहुत बड़ा पत्थर फेंक दिया जाये तो लहर तालाब से बाहर निकल जाती है। ऐसे चित में जो दुख शांत अवस्था में होते हैं वो कभी भी गोचर में पापी ग्रह की गति बदलने से बाहर आ जाते हैं। जैसे ही पापी ग्रह शनि, राहू या केतू की महादशा या शनि साढ़े साती चलती है तो चित दुख को बाहर भेज देता है। यह दुख भगवान ने शरीर के निर्माण के समय ही 5 तत्वों पर आधारित कर दिया था। जैसे 84 लाख योनियों में 5 तत्वों का उतार-चड़ाव आएगा वैसे ही जीवन में दुख का उतार-चड़ाव आएगा। 

मनुष्य का शरीर 5 तत्वों से बना है । 5 तत्वों की मात्रा का अनुपात जब शरीर में कम या ज्यादा  हो जाता है या अनुपात बिगड़ जाता है तो दुख बढ़ जाता है। क्योंकि मनुष्य शरीर के दुख का मुख्य आधार सिर्फ 5 महाभूत तत्व ही होते हैं। ये 5 तत्व ही 84 लाख योनियों को दुख देते हैं। ये 5 तत्व ही जानवरों के साथ साथ पेड़-पोधों को भी दुख देते हैं। अगर प्रकृति में सूखा पड़ जाये तो वनस्पति का विनाश हो जाता है और वनस्पति का विनाश होगा तो वनस्पति से जीवन लेने वाली योनी दुख के आगोस में आ जाती हैं।

भगवान  ने यह दुख देवताओं को क्यों नहीं दिया था। स्वर्ग लोक में देवता योनी में सुख ही सुख क्यों होता है ? 

इसका मुख्य कारण है कि देवता योनी में सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों के साथ रहता है। सूक्ष्म शरीर की आत्मा में 5 तत्व नहीं होते हैं। और जो योनी 5 तत्वों के ( पृथ्वी , जल , वायु , आकाश और अग्नि ) के प्रभाव से दूर है तो उस देवता योनी पर दुख का प्रभाव नहीं होता है। किसी भी दुख का प्रभाव 5 तत्वों से बनी वस्तु पर ही होता है। 

मनुष्य जीवन में इस दुख को योग , साधना , ध्यान , समाधि , पूजा-पाठ , यज्ञ , जप , तप , नग और मंत्र दान धर्म से कम किया जा सकता है।  इन सभी उपायों से चित में स्थित दुख को शांत किया जा सकता है। और योग विज्ञान से इस दुख को पूर्ण रूप से चित से अलग किया जा सकता है। 

-डॉ. एचएस रावत ( वैदिक & आध्यात्मिक फ़िलॉसफ़र )