क्या कर्मों का फल इसी जन्म में भोगना ही पड़ता है ?
नईदिल्ली। क्या कर्मों का फल इसी जन्म में भोगना ही पड़ता है ? विज्ञान व अध्यात्म क्या कहता है ? क्यों एक विद्वान को मिला सूअर का जन्म ?
यह एक ऐसा विषय है जिसको सिद्ध करना बहुत कठिन काम है । कि आपने जो कर्म किया है वह गलत है या सही है। और इसका बुरा या अच्छा फल इस जन्म में मिलेगा या नहीं मिलेगा या अगले जन्म में मिलेगा या नहीं मिलेगा।
कर्म दो प्रकार के होते हैं 1-दैनिक कर्म 2-संचित कर्म । दैनिक वो कर्म होते हैं जिनको हम रोजाना करते हैं और उनका फल हमको तुरंत मिल जाता है। और यही छोटे-छोटे दैनिक कर्म जमा होते-होते संचित कर्म में बदल जाते हैं। जैसे आपने झूठ बोला कि मैं चोर नहीं हूं और आप सजा से बच जाते हैं। आपने दबाई ली और ठीक हो जाते हैं । आपने किसी को गाली दी और माफी मांग ली लेकिन वो गाली संचित हो गयी है। आपने किसी की हत्या की और झूठी गवाही दी और आप बच गए लेकिन वो हत्या संचित हो गयी है। आपको पता ही नहीं चला। इन कमों के फल आपको तुरंत मिल जाते हैं। क्योंकि इन कर्मो की अवधि बहुत कम होती है। घंटे या दो घंटे या साल में खत्म हो जाते हैं।
जैसे आपने मैच खेला और मैच की अवधि 8 घंटे की है। 8 घंटे में मैच के कर्म का हार जीत का फल मिल जाएगा। उसी प्रकार जीवन के मैच की अवधि 100 वर्ष लगभग लंबी होती है। जब कर्म करते-करते 100 वर्ष बीत जाते हैं तो जीवन का मैच खत्म हो जाता है फिर हमारे 100 वर्ष के संचित बुरे या भले कर्मो के फैसले का फल का समय आ जाता है।
एक छोटी सी आध्यात्मिक कहानी से आपको समझाने की कोशिश करता हूँ। एक बहुत बड़े कथाकार व ज्योतिषी थे। वे त्रिकालदर्शी थे। उनका नाम दुनिया में फैला हुआ था। उनके 4 पुत्र थे और चारों बहुत ही विद्वान थे। एक दिन कथाकार ज्योतिषी जी का अंतिम समय आ गया और मरने लगे। तो चारों पुत्रों ने पूछा कि पिताश्री आप त्रिकालदर्शी हैं। आप हमें यह बताओ कि आप मरने के बाद कहाँ जन्म लेंगे। और हमें कोई मुसीबत हुई तो हम आपसे कैसे बात कर सकते हैं। कथाकार ज्योतिषी जी ने कहा कि पुत्रों मैं एक हरिजन के यहाँ सूअर का जन्म लूँगा। क्योंकि मेरे संचित कर्म बहुत बुरे हैं। मैने पूरा जीवन लोगों को अपने ज्ञान से मूर्ख बनाया है। फिर पुत्रों ने पूछा कि पापा सुअरी के तो 9,10 बच्चे पैदा होते हैं। हम कैसे पहचाने कि हमारे पापा कौन से हैं।
कथाकार ज्योतिषी बोले जिस सूअर के बच्चे को तिलक लगा हो समझ जाना कि वो मैं ही हूँ। और एक मंत्र दिया जब तुमको कोई बात मुझसे करनी हो तो इस मंत्र के बोलने से बात हो जाएगी। और यह कह कर कथाकार ज्योतिषी जी मर गए। पड़ोस में हरिजन के यहाँ सुअरी ने 10 बच्चों को जन्म दिया। और उनमें एक तिलक वाला बच्चा भी पैदा हुआ। और सभी पुत्र उस सूअर के बच्चे को घर ले आए। उसको शैम्पू से नहलाते बेड पर सुलाते और ब्रैड मक्खन खिलाते, पर घर से सूअर का बच्चा भागकर नाली में चला जाता और गंदगी खाने लग जाता। पिताश्री का दुख पुत्रों से नहीं देखा जा रहा था। वे बहुत दुखी थे।
फिर एक दिन पुत्रों ने मंत्र का प्रयोग कर पिताश्री से बात की और कहा कि पिताजी हमसे आपका ये दुख नहीं देखा जाता है। आप कोई उपाय बताएं जिससे आपकी गति हो जाये। पिताजी ने कहा कि पुत्रों मेरे संचित कर्म ही इतने खराब थे। जिसके कारण मुझे नाली में ही रहना पड़ेगा तथा गंदगी ही खानी पड़ेगी। मुझे अपने कर्मों का फल भोगने दो। और मुझे हरिजन के घर छोड़ कर आ जाओ।
और पुत्रों आपको एक शिक्षा देता हूँ कि ज़िंदगी में कभी भी अपने ज्ञान का दुरूपयोग मत करना। किसी के लिए फ़ेसबुक पर बुरा मत लिखना। किसी की चुगली मत करना, किसी की बुराई मत करना, किसी का बुरा मत सोचना, किसी की आत्मा को दर्द मत देना। ये सभी कर्म सोचने मात्र से ही कंप्यूटर की फ़ायलों की तरह संचित हो जाते हैं।
अब आपको इसका वैज्ञानिक पहलू भी समझाने की कोशिश करता हूँ। जब आप कंप्यूटर पर काम करते हो तो आपका बुरा या अच्छा काम 3 जगह संचित होता है। अगर आप उसको डिलीट भी कर दें तो भी वो हिस्ट्री में संचित होता है। अगर हिस्ट्री से भी डिलीट कर दें तो भी वेबसाइट पर संचित होता है।
इसलिए बुरे या भले संचित कर्मो का फल आपको अपनी उम्र की अवधि के अनुसार अवश्य ही भोगना पड़ता है।
- डॉ. एचएस रावत
(अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक गुरु)